Friday, 14 April 2017

वामपंथी कुत्तों के लिए घी

ये बात वामपंथी कुत्तों के लिए घी है| नहीं पचेगा |

डा. अम्बैडकर ने अपनी पुस्तक** शूद्र कौन** में लिखा कि कोई भी विदेशी नहीं है ,
ब्राहमण छत्रिय वैश्य शूद्र चारों ही इस देश के मूल निवासी है. उन्होने अपनी इस पुस्तक
में शूद्रों के पूर्वजो को छत्रिय बताया . प्रस्तुत है अम्बेडकर की इस पुस्तक के कुछ अंश--
डा अम्बेडकर लिखते हैं कि ," मेरी अपनी गवेषणा के आधार पर प्रतिपादित मत निष्कर्ष
ही इस पुस्तक की विशेषतायें हैं . इस कृति में दो विशेष प्रश्न उठाये गये हैं (१) शूद्र कौन थे
तथा(२) वे प्राचीन आर्यो के समाज का चौथा वर्ण क्यो और कैसे बने . संछेंप में मेरा मत
निम्न प्रकार है---(१)-- शूद्र आर्यो की जातियों में शूर्यवंशी थे (२) एक समय था जब
आर्यो में केवल तीन ही वर्ण थे - ब्राहमण छत्रिय वैश्य . शूद्रों का प्रथक वर्ण न था . वे
आर्यो के द्वितीय वर्ण छत्रिय वर्ण का ही एक अंग थे . शूद्र राजाओ ओर ब्राहमणों में
निरन्तर संघर्ष चला और ब्राहमणो को शूद्रों के वीभत्स अत्याचार सहने पडे (५) शूद्रों के
दमन से आक्रान्त ब्राहमणों ने घृणावश शूद्रों का उपनयन बन्द कर दिया. उपनयन विरोध
से शूद्रों का सामाजिक पराभाव हुआ , वे सामाजिक स्तर पर इतने पतित हुये कि वैश्यों
से नीचे एक और वर्ण -- चौथा वर्ण-- बनना पडा

बंगलादेश के अल्पसंख्यको को जिहादियो के सामने गोश्त की तरह परोसने वाला और कोई नहीं बाबा भीम राव अम्बेडकर जी का राजनितिक गुरु था योगेंद्र नाथ मण्डल , इसी मण्डल की वजह से आज का बंगलादेश वजूद में आया और 1947 से पहले के 44% जनसंख्या वाले बंगलादेशी अल्पसंख्यक आज 8% रह गए है ,सिर्फ इन्ही महान कुंठित दलित चिंतक की वजह से जिनका नाम था योगेंद्र नाथ मण्डल,
और मजे की बात यही योगेन्द्रनाथ मण्डल 1972 के बाद अपने ही बनाये बंगलादेश से लात मारकर बाहर कर दिए गए और इस कुंठित व्यक्ति ने अपना बाकी का बचा हुआ जीवन भारत में कहि कोने में बैठकर व्यतीत करना पड़ा इनको मरते दम तक अपनी गलती सताती रही और आखरी समय पर इनके जीवन के महत्वपूर्ण यही दो शब्द थे , #इस्लाम_किसीका_सगा_नहीं।।।।

भारत में अगर आरक्षण की रोटी अगर हिन्दू सवर्णो ने भीख दिया है तो अधिकार समझने लगे | जब पाकिस्तान में मुसलमानो ने इनको अधिकार तो दूर जब गाजर मूली की तरह काटा तो नसीब समझने लगे |
क्या मिला पाकिस्तान में मुसलमानो के साथ मिलकर तुमने ही तो लड़ाई लड़ी थी | जहा खाना मिलता है वही जहर उगलते हो |
डूब मरो ! अमेरिकी रुसी बम हलाल है भारत में खाना पानी मिलता है तो वन्दे मातरम हराम है |

Sunday, 9 April 2017

राम सेतु का निर्माण का वास्तविक समय

राम राम । सीताराम । राम राम ।
श्री राम धरती पर त्रेता युग के अंत में आये थे |
वेद और शास्त्र के अनुसार हमलोग अभी कलियुग में जी रहे हैं जिसके 5018 वर्ष बीत चुके हैं। द्वापरयुग का काल 864000 वर्ष (आठ लाख चौसठ हज़ार) का हैं। अर्थात त्रेतायुग और कलियुग के बीच द्वापरयुग का 864000 वर्ष समाप्त हो चूके हैं। अगर कलियुग और द्वापर के समय को जोड़ा जाय तो 869018 तो आठ लाख उनहत्तर हज़ार अठारह बर्ष होते है | अतः राम सेतु कम से कम 9 लाख बर्ष पहले बना होगा |
आज तक और पश्चिमी मीडिया का झूठ :
आजतक न्यूज़ चैनल ने एक कार्यक्रम आरम्भ किया हैं "ईश्वर की खोज" इसमें दर्शकों के मन में बार-बार यह बिठाने का प्रयास किया जा रहा हैं कि - श्रीराम का आगमन धरती पे 7000 वर्ष पूर्व हुआ। इससे आमलोगों के दिमाग में ये बात आएगी की यदि श्रीराम 7000 वर्ष पूर्व आये तो रामसेतु भी 7000 वर्ष प्राचीन होना चाहिए। लेकिन नासा ने रामसेतु को करीब साढ़े नौ लाख वर्ष पुराना कहा।
आइए इसपे एक छोटा सा शोध हो जाएँ। श्री राम त्रेतायुग के अंत में आएं और श्रीकृष्ण द्वापरयुग के अंत में। हमलोग अभी कलियुग में जी रहे हैं जिसके 5018 वर्ष बीत चुके हैं। द्वापरयुग का काल 864000 वर्ष (आठ लाख चौसठ हज़ार) का हैं। अर्थात त्रेतायुग और कलियुग के बीच द्वापरयुग का 864000 वर्ष समाप्त हो चूके हैं। इसका मतलब श्रीराम के काल और हमारे बीच कम से कम नौ लाख वर्ष बीत चूका हैं। नासा के वैज्ञानिक भी तो यही कह रहे हैं कि रामसेतु लगभग साढ़े नौ लाख वर्ष प्राचीन हैं तो फिर आजतक न्यूज़ वाले श्रीराम का काल 7000 वर्ष पूर्व कहकर हमे क्यूं बरगला रहा हैं...?
दरअसल देश के दुश्मनों की शुरू से यही साजिश रही की भारतीयों को ये कभी पता नहीं चले की उसका धर्म लाखों-करोड़ो वर्ष प्राचीन हैं। वे भारत का इतिहास दस हज़ार वर्ष से पुराना दिखाना ही नही चाहते और वे लगातार हमारे लोककथाओं का समयकाल हरवक्त कम करके ही दिखाते हैं। हमे इस षड्यंत्र को समझना होगा तभी हम अपना सही व गौरवशाली इतिहास जान पाएंगे।
जय श्री राम
ज्ञातव्य : मुख्य लौकिक युग सत्य (उकृत), त्रेता, द्वापर और कलि नाम से चार भागों में (चतुर्धा) विभक्त है। इस युग के आधार पर ही मन्वंतर और कल्प की गणना की जाती है। इस गणना के अनुसार सत्य आदि चार युग संध्या (युगारंभ के पहले का काल) और संध्यांश (युगांत के बाद का काल) के साथ 12000 वर्ष परिमित होते हैं। चार युगों का मान 4000 + 3000 + 2000 + 1000 = 10000 वर्ष है; संध्या का 400 + 300 + 200 + 100 = 1000 वर्ष; संध्यांश का भी 1000 वर्ष है। युगों का यह परिमाण दिव्य वर्ष में है। दिव्य वर्ष = 360 मनुष्य वर्ष है; अत: 12000 x 360 = 4320000 वर्ष चतुर्युग का मानुष परिमाण हुआ। तदनुसार सत्ययुग = 1728000; त्रेता = 1296000; द्वापर = 864000; कलि = 432000 वर्ष है। ईद्दश 1000 चतुर्युग (चतुर्युग को युग भी कहा जाता है) से एक कल्प याने ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष है। 71 दिव्ययुगों से एक मन्वंतर होता है। यह वस्तुत: महायुग है। अन्य अवांतर युग भी है।

http://www.livehindustan.com/news/article/article1-story-201935.html

धर्मांतरण के दलाल और साज़िस

राम राम | सीताराम | राम राम
पश्चिमी मीडिया ,बुद्धिजीवी , धर्मांतरण के दलाल वामपंथी के हिन्दू के लिए कुतर्क और साज़िस

ब्राह्मणो के लिए :-
ब्राह्मण के साथ बड़ा भेदभाव हो रहा है आरक्षण के कारण ये छोटे लोग बड़े पद पर बैठ जा रहे है | आपके साथ बड़ा अन्याय हो रहा है | छोटे लोग पूजा पाठ कर रहे बड़ा अन्याय है |


क्षत्रिय के लिए : -
आप पर बहुत जुल्म हो रहा है आप न तो सत्ता मे हो न आरक्षण मिलता है | बस आप एक तमाशबीन हो गए हो | बड़ा अन्याय हो रहा है | छोटे लोग सत्ता में है |
वैस्य के लिए :
आप का तो जीना मुश्किल है आप का रोजगार तो गया | बस अब देखो कितना अन्याय है | अत्याचार है |

अन्य के लिए :-
आपका आरक्षण तो गया ये लोग बस आपको गुलाम बनाना चाहते है | ना तो आप पूजा पाठ कर रहे हो न तो सत्ता में हो भुखमरी और बेरोजगारी से परेसान हो |
SC ST को आप न तो पूजा पाठ करते हो आपके पूर्वज पर बड़ा अत्यचार हो रहा था | बस अपना धर्म छोड़ दो | इन पंडितो क्षत्रियो को मारो इनका बड़ा गर्क करो |


युवा के लिए :-
जो युवा पढ़ाई और रोजगार करने विदेश जाते है | उनका ये ईसाई मिशनरी वाले ब्रेनवाश कर देते है | युवा को ईसाईयत पढ़ा दिया जाता है | जिससे ये अपने धर्म देश और समाज को छोटा समझने लगते है | इनके मन में धर्म और देश के प्रति नफरत और कुरीति बताते है | इन्हे हमेशा नीच होने का एहसास दिखाते है | देश और धर्म का झूठ पड़ोसा जाता है | ईसाईयत और इस्लामियत को अच्छा कहा जाता है | कभी कभी कॉलेज या शिक्षा संस्थान में ही धर्म परिवर्तन करवा देते है | दिल में जहर और नफरत घोला जाता है | इनको असभ्य बोलै जाता है | धर्म परिवर्तन के बाद इसे सभ्य बोला जाता है |


वामपंथी बुद्धिजीवी ,मिडिया, समाचार पत्र, प्रोफेसर लेखक के लिए :

इस्लाम और ईसाई धर्म परिवर्तन वाले वामपंथी बुद्धिजीवी ,मिडिया, समाचार पत्र, प्रोफेसर लेखक को एक मोटी रकम देते है | इस रकम के बदले ये लोग दिन रात भारत और हिन्दू को ख़राब बुरा भला कहते रहते है | ये हिन्दू की खराबी दिखते है | जनता में असंतोष बढ़ाते है | धर्म को झूठा और बदनाम करते है |धर्म को झूठा और काल्पनिक बोलकर ब्रेन वाश करते है |
रोजी रोटी कमाने के लिए पढ़ाई करने वाले युवा धर्म और देश के ही विरुद्ध हो जाते है | धर्म छोड़कर ये उग्र बन जाते है | इनका जिंदगी से देश और धर्म सब ख़त्म हो जाता है | जिंदगी में अँधेरा हो जाता है |
आज बहुत सारा भारतीय संसंथान में इन धर्म परिवर्तन वालो का बोलबाला है | आप JNU यादवपुर हैदाराबाद इत्यादि यूनिवर्सिटी में नारा सिर्फ एक झलक है स्थिति बहुत भयावह है |

मीडिया रिपोर्टर :
यहाँ देखो इस पंडित को मार दिया | ये देखो गाय मार दिया | ये देखो दलित मार दिया | ये देखो बनिया को लूट लिया | ये देखो क्षत्रिय का बलात्कार हुआ | ये देखो ये अन्यायी है | ये देखो ये गलत है | बस अब तो हद हो गयी | पंडित को मारो | क्षत्रिय को मारो | बनिया मारो | दलित मारो | मारो मारो सब मारो | बस झगड़ा शुरू | दे दनादन | ये देखो दलित CM बन गया | ये देखो दलित IAS ऑफ़िसर बन गया | ये देखो ब्राह्मण गद्दी पर चढ़ा | ये देखो क्षत्रिय ने IIT टॉप किया | अन्याय हो गया | ये देखो भगवा जीत गया | ये देखो हिन्दू PM बन गया | ये देखो योगी व्यापारी हो गया | ये देखो साधु नेता हो गया | साधु के पास संपत्ति है | ये देखो दलित कितना धनी हो गया | इस दलित की शान तो देखो महाराजा हो गया | मारो मारो | अन्याय है | सवर्ण मंत्री बन गया | ये क्या हो रहा है | देखो PM साऊथ से बन गया | देखो आज ये चोर भागा | देखो युवा का रोजगार छीन गया | ये चोर दलित का है इसलिए पिटा गया | ये राजपूत था इसलिए बलात्कार हुआ | ये सन्यासी को मारा गया |
आप सरकार और देश के विरूद्ध खड़े हो जाओ | आप सस्त्र उठा लो | ये देखो ये ब्राह्मण यूरेशिया से आ गया | यूरेशिया से मतलब विदेश से आ गया | (यूरोप और एशिया (हिंदुस्तान और इसके सारे राज्य एशिया में है ) ) | मूलनिवासी खतरे में आ गया | मारो बस मारो |
बस सब मिलकर| हमें सत्ता दो | हंगामा शुरू | अन्याय बंद करो सब गलत है | हमें भी आरक्षण दो | हमें पूजा पाठ करने दो | बस कोहराम चालु | बवाल चालू |
बस धर्मांतरण वाले चुपके से धर्मांतरण करवा देते है | बुद्धिजीवी हथियार पकड़ा देते है |
ज्ञातव्य :
कश्मीर बंगाल असम केरल हैदराबाद सिर्फ बानगी है | सच्चाई तो बहुत कड़वी है |
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते, तब तक आप भगवान पर भी भरोसा नहीं कर सकेंगे। - स्वामी विवेकानंद
हरि ॐ शांति: | शांति: | शांति: |

Saturday, 8 April 2017

आर्यो के आगमन का सिद्धांत आधारहीन

आर्यो के आगमन का सिद्धांत आधारहीन : फ्राली

वैदिक साहित्य का सूक्ष्म अध्ययन करने पर पता चलता है कि भारत में आर्यो के आगमन का सिद्धांत निराधार है। अक्सर यह बातें की जाती हैं कि आर्य दूसरे देश से भारत आए थे, लेकिन शोध के बाद यह बात साबित नहीं होती है। यह दावा अमेरिकी वैदिक अध्ययन संस्थान के संस्थापक डेविड फ्राली ने किया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में व्याख्यान के दौरान उन्होंने कहा कि आर्यो के आगमन का सिद्धांत खंडित दृष्टिकोण पर आधारित होने के कारण दोषपूर्ण है।
डेविड फ्राली ने कहा कि सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक साहित्य को जोड़कर देखने से सारी समस्या का निदान हो जाता है। आर्यो के आगमन संबंधी सभी सिद्धांतों का वैदिक आधार पर खंडन करते हुए उन्होंने कहा कि युद्ध आर्य तथा अनार्य के बीच नहीं बल्कि आर्यो के ही विभिन्न समुदायों के बीच हुए थे। उन्होंने शिव के अनार्य देवता होने का खंडन भी ऋगवेद के प्रमाणों के आधार पर किया। शिव तथा इंद्र वस्तुत: आर्य तथा अनार्य देव नहीं थे। ऋगवेद में उनकी अभिन्नता के कई प्रमाण मिलते हैं। आर्यो तथा द्रविड़ों की भिन्नता से संबंधित बातें खंडित व्याख्यान हैं।
संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश सी भारद्वाज ने बताया कि भारतीय साहित्य में कहीं भी आर्य शब्द का जाति विशेष के अर्थ में प्रयोग नहीं है। आर्य शब्द का अर्थ विशिष्ट तथा श्रेष्ठ गुण जन है। आर्यो के आक्रमण से संबंद्धित सिद्धांत औपनिवेशिक भारत के दुष्परिणामों में से एक है। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा प्रायोजित विद्वानों ने बलपूर्वक आर्य शब्द के जातीय संदर्भ ढूंढ़कर द्रविड़ के सामने खड़ा किया। उत्तर-दक्षिण तथा निम्न उच्च आदि विवाद भारत की अखंडता के लिए खतरा हैं। विभाग समय-समय पर इतिहास और संस्कृत के जुड़ाव से संबंधित व्याख्यान आयोजित करेगा।
आर्यो के आगमन का सिद्धांत आधारहीन : फ्राली

 In the colonial era the British used it to divide India along north-south, Aryan-Dravidian lines, an interpretation various south Indian politicians have taken up as the cornerstone for their political projection of Dravidian identity. 

The Aryan invasion theory is the basis of the Marxist critique of Indian history where caste struggle takes the place of class struggle with the so-called pre-Aryan indigenous peoples turned into the oppressed masses and the invading Aryans turned into the oppressors, the corrupt ruling elite. Christian and Islamic missionaries have used the theory to denigrate the Hindu religion as a product of barbaric invaders and promote their efforts to convert Hindus. Every sort of foreign ideology has employed it to try to deny India any real indigenous civilization so that the idea of the rule of foreign governments or ideas becomes acceptable. 

Even today it is not uncommon to see this theory appearng in Indian newspapers to uphold modern, generally Marxist or anti-Hindu political views. From it comes the idea that there is really no cohesive Indian identity or Hindu religion but merely a collection of the various peoples and cultures who have come to the subcontinent, generally from the outside. Therefore a reexamination of this issue is perhaps the most vital intellectual concern for India today.


The Aryan invasion theory has been used for political and religious advantage in a way that is perhaps unparalleled for any historical idea. Changing it will thereby alter the very fabric of how we interpret ourselves and our civilization East and West. It is bound to meet with resistance, not merely on rational grounds but to protect the ideologies which have used it to their benefit. Even when evidence to the contrary is presented, it is unlikely that it will be given up easily. The evidence which has come up that has disproved it has led to the reformulation of the theory along different lines, altering the aspects of it that have become questionable but not giving up its core ideas.

Yet with the weight of much new evidence today, the Aryan invasion theory no longer has any basis to stand on, however it is formulated. There is no real evidence for any Aryan invasion - whether archeological, literary or linguistic - and no scholar working in the field, even those who still accept some outside origin for the Vedic people (the so-called Aryans), accepts the theory in its classical form of the violent invasion and destruction of the Harappan cities by the incoming Aryans.

The Aryan invasion theory has been used for political and religious advantage

there is no racial evidence of any such Indo-Aryan invasion of India but only of a continuity of the same group of people who traditionally considered themselves to be Aryans.
Current archeological data do not support the existence of an Indo Aryan or European invasion into South Asia at any time in the preor protohistoric periods. Instead, it is possible to document archeologically a series of cultural changes reflecting indigenous cultural development from prehistoric to historic periods. The early Vedic literature describes not a human invasion into the area, but a fundamental restructuring of indigenous society. The Indo-Aryan invasion as an academic concept in 18th and 19th century Europe reflected the cultural milieu of the period. Linguistic data were used to validate the concept that in turn was used to interpret archeological and anthropological data.
Western scholars are beginning to reject the Aryan invasion or any outside origin for Hindu civilization.

रामायण मनका 108

ॐॐॐ जय सियाराम ॐॐॐ
रामायण – मनका 108
इस पाठ की एक माला प्रतिदिन करने से मनोकामना पूर्ण होती है, ऎसा माना गया है.
रघुपति राघव राजाराम ।
पतितपावन सीताराम ।।
जय रघुनन्दन जय घनश्याम ।
पतितपावन सीताराम ।।
भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे ।
दूर करो प्रभु दु:ख हमारे ।।
दशरथ के घर जन्मे राम ।
पतितपावन सीताराम ।। 1 ।।
विश्वामित्र मुनीश्वर आये ।
दशरथ भूप से वचन सुनाये ।।
संग में भेजे लक्ष्मण राम ।
पतितपावन सीताराम ।। 2 ।।
वन में जाए ताड़का मारी ।
चरण छुआए अहिल्या तारी ।।
ऋषियों के दु:ख हरते राम ।
पतितपावन सीताराम ।। 3 ।।
जनक पुरी रघुनन्दन आए ।
नगर निवासी दर्शन पाए ।।
सीता के मन भाए राम ।
पतितपावन सीताराम ।। 4।।
रघुनन्दन ने धनुष चढ़ाया ।
सब राजो का मान घटाया ।।
सीता ने वर पाए राम ।
पतितपावन सीताराम ।।5।।
परशुराम क्रोधित हो आये ।
दुष्ट भूप मन में हरषाये ।।
जनक राय ने किया प्रणाम ।
पतितपावन सीताराम ।।6।।
बोले लखन सुनो मुनि ग्यानी ।
संत नहीं होते अभिमानी ।।
मीठी वाणी बोले राम ।
पतितपावन सीताराम ।।7।।
लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो ।
जो कुछ दण्ड दास को दीजो ।।
धनुष तोडय्या हूँ मै राम ।
पतितपावन सीताराम ।।8।।
लेकर के यह धनुष चढ़ाओ ।
अपनी शक्ति मुझे दिखलाओ ।।
छूवत चाप चढ़ाये राम ।
पतितपावन सीताराम ।।9।।
हुई उर्मिला लखन की नारी ।
श्रुतिकीर्ति रिपुसूदन प्यारी ।।
हुई माण्डव भरत के बाम ।
पतितपावन सीताराम ।।10।।
अवधपुरी रघुनन्दन आये ।
घर-घर नारी मंगल गाये ।।
बारह वर्ष बिताये राम ।
पतितपावन सीताराम ।।11।।
गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लीनी ।
राज तिलक तैयारी कीनी ।।
कल को होंगे राजा राम ।
पतितपावन सीताराम ।।12।।
कुटिल मंथरा ने बहकाई ।
कैकई ने यह बात सुनाई ।।
दे दो मेरे दो वरदान ।
पतितपावन सीताराम ।।13।।
मेरी विनती तुम सुन लीजो ।
भरत पुत्र को गद्दी दीजो ।।
होत प्रात वन भेजो राम ।
पतितपावन सीताराम ।।14।।
धरनी गिरे भूप ततकाला ।
लागा दिल में सूल विशाला ।।
तब सुमन्त बुलवाये राम ।
पतितपावन सीताराम ।।15।।
राम पिता को शीश नवाये ।
मुख से वचन कहा नहीं जाये ।।
कैकई वचन सुनयो राम ।
पतितपावन सीताराम ।।16।।
राजा के तुम प्राण प्यारे ।
इनके दु:ख हरोगे सारे ।।
अब तुम वन में जाओ राम ।
पतितपावन सीताराम ।।17।।
वन में चौदह वर्ष बिताओ ।
रघुकुल रीति-नीति अपनाओ ।।
तपसी वेष बनाओ राम ।
पतितपावन सीताराम ।।18।।
सुनत वचन राघव हरषाये ।
माता जी के मंदिर आये ।।
चरण कमल मे किया प्रणाम ।
पतितपावन सीताराम ।।19।।
माता जी मैं तो वन जाऊं ।
चौदह वर्ष बाद फिर आऊं ।।
चरण कमल देखूं सुख धाम ।
पतितपावन सीताराम ।।20।।
सुनी शूल सम जब यह बानी ।
भू पर गिरी कौशल्या रानी ।।
धीरज बंधा रहे श्रीराम ।
पतितपावन सीताराम ।।21।।
सीताजी जब यह सुन पाई ।
रंग महल से नीचे आई ।।
कौशल्या को किया प्रणाम ।
पतितपावन सीताराम ।।22।।
मेरी चूक क्षमा कर दीजो ।
वन जाने की आज्ञा दीजो ।।
सीता को समझाते राम ।
पतितपावन सीताराम ।।23।।
मेरी सीख सिया सुन लीजो ।
सास ससुर की सेवा कीजो ।।
मुझको भी होगा विश्राम ।
पतितपावन सीताराम ।।24।।
मेरा दोष बता प्रभु दीजो ।
संग मुझे सेवा में लीजो ।।
अर्द्धांगिनी तुम्हारी राम ।
पतितपावन सीताराम ।।25।।
समाचार सुनि लक्ष्मण आये ।
धनुष बाण संग परम सुहाये ।।
बोले संग चलूंगा राम ।
पतितपावन सीताराम ।।26।।
राम लखन मिथिलेश कुमारी ।
वन जाने की करी तैयारी ।।
रथ में बैठ गये सुख धाम ।
पतितपावन सीताराम ।।27।।
अवधपुरी के सब नर नारी ।
समाचार सुन व्याकुल भारी ।।
मचा अवध में कोहराम ।
पतितपावन सीताराम ।।28।।
श्रृंगवेरपुर रघुवर आये ।
रथ को अवधपुरी लौटाये ।।
गंगा तट पर आये राम ।
पतितपावन सीताराम ।।29।।
केवट कहे चरण धुलवाओ ।
पीछे नौका में चढ़ जाओ ।।
पत्थर कर दी, नारी राम ।
पतितपावन सीताराम ।।30।।
लाया एक कठौता पानी ।
चरण कमल धोये सुख मानी ।।
नाव चढ़ाये लक्ष्मण राम ।
पतितपावन सीताराम ।।31।।
उतराई में मुदरी दीनी ।
केवट ने यह विनती कीनी ।।
उतराई नहीं लूंगा राम ।
पतितपावन सीताराम ।।32।।
तुम आये, हम घाट उतारे ।
हम आयेंगे घाट तुम्हारे ।।
तब तुम पार लगायो राम ।
पतितपावन सीताराम ।।33।।
भरद्वाज आश्रम पर आये ।
राम लखन ने शीष नवाए ।।
एक रात कीन्हा विश्राम ।
पतितपावन सीताराम ।।34।।
भाई भरत अयोध्या आये ।
कैकई को कटु वचन सुनाये ।।
क्यों तुमने वन भेजे राम ।
पतितपावन सीताराम ।।35।।
चित्रकूट रघुनंदन आये ।
वन को देख सिया सुख पाये ।।
मिले भरत से भाई राम ।
पतितपावन सीताराम ।।36।।
अवधपुरी को चलिए भाई ।
यह सब कैकई की कुटिलाई ।।
तनिक दोष नहीं मेरा राम ।
पतितपावन सीताराम ।।37।।
चरण पादुका तुम ले जाओ ।
पूजा कर दर्शन फल पावो ।।
भरत को कंठ लगाये राम ।
पतितपावन सीताराम ।।38।।
आगे चले राम रघुराया ।
निशाचरों का वंश मिटाया ।।
ऋषियों के हुए पूरन काम ।
पतितपावन सीताराम ।।39।।
‘अनसूया’ की कुटीया आये ।
दिव्य वस्त्र सिय मां ने पाय ।।
था मुनि अत्री का वह धाम ।
पतितपावन सीताराम ।।40।।
मुनि-स्थान आए रघुराई ।
शूर्पनखा की नाक कटाई ।।
खरदूषन को मारे राम ।
पतितपावन सीताराम ।।41।।
पंचवटी रघुनंदन आए ।
कनक मृग “मारीच“ संग धाये ।।
लक्ष्मण तुम्हें बुलाते राम ।
पतितपावन सीताराम ।।42।।
रावण साधु वेष में आया ।
भूख ने मुझको बहुत सताया ।।
भिक्षा दो यह धर्म का काम ।
पतितपावन सीताराम ।।43।।
भिक्षा लेकर सीता आई ।
हाथ पकड़ रथ में बैठाई ।।
सूनी कुटिया देखी भाई ।
पतितपावन सीताराम ।।44।।
धरनी गिरे राम रघुराई ।
सीता के बिन व्याकुलताई ।।
हे प्रिय सीते, चीखे राम ।
पतितपावन सीताराम ।।45।।
लक्ष्मण, सीता छोड़ नहीं तुम आते ।
जनक दुलारी नहीं गंवाते ।।
बने बनाये बिगड़े काम ।
पतितपावन सीताराम ।।46 ।।
कोमल बदन सुहासिनि सीते ।
तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते ।।
लगे चाँदनी-जैसे घाम ।
पतितपावन सीताराम ।।47।।
सुन री मैना, सुन रे तोता ।
मैं भी पंखो वाला होता ।।
वन वन लेता ढूंढ तमाम ।
पतितपावन सीताराम ।।48 ।।
श्यामा हिरनी, तू ही बता दे ।
जनक नन्दनी मुझे मिला दे ।।
तेरे जैसी आँखे श्याम ।
पतितपावन सीताराम ।।49।।
वन वन ढूंढ रहे रघुराई ।
जनक दुलारी कहीं न पाई ।।
गृद्धराज ने किया प्रणाम ।
पतितपावन सीताराम ।।50।।
चख चख कर फल शबरी लाई ।
प्रेम सहित खाये रघुराई ।।
ऎसे मीठे नहीं हैं आम ।
पतितपावन सीताराम ।।51।।
विप्र रुप धरि हनुमत आए ।
चरण कमल में शीश नवाये ।।
कन्धे पर बैठाये राम ।
पतितपावन सीताराम ।।52।।
सुग्रीव से करी मिताई ।
अपनी सारी कथा सुनाई ।।
बाली पहुंचाया निज धाम ।
पतितपावन सीताराम ।।53।।
सिंहासन सुग्रीव बिठाया ।
मन में वह अति हर्षाया ।।
वर्षा ऋतु आई हे राम ।
पतितपावन सीताराम ।।54।।
हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ ।
वानरपति को यूं समझाओ ।।
सीता बिन व्याकुल हैं राम ।
पतितपावन सीताराम ।।55।।
देश देश वानर भिजवाए ।
सागर के सब तट पर आए ।।
सहते भूख प्यास और घाम ।
पतितपावन सीताराम ।।56।।
सम्पाती ने पता बताया ।
सीता को रावण ले आया ।।
सागर कूद गए हनुमान ।
पतितपावन सीताराम ।।57।।
कोने कोने पता लगाया ।
भगत विभीषण का घर पाया ।।
हनुमान को किया प्रणाम ।
पतितपावन सीताराम ।।58।।
अशोक वाटिका हनुमत आए ।
वृक्ष तले सीता को पाये ।।
आँसू बरसे आठो याम ।
पतितपावन सीताराम ।।59।।
रावण संग निशिचरी लाके ।
सीता को बोला समझा के ।।
मेरी ओर तुम देखो बाम ।
पतितपावन सीताराम ।।60।।
मन्दोदरी बना दूँ दासी ।
सब सेवा में लंका वासी ।।
करो भवन में चलकर विश्राम ।
पतितपावन सीताराम ।।61।।
चाहे मस्तक कटे हमारा ।
मैं नहीं देखूं बदन तुम्हारा ।।
मेरे तन मन धन है राम ।
पतितपावन सीताराम ।।62।।
ऊपर से मुद्रिका गिराई ।
सीता जी ने कंठ लगाई ।।
हनुमान ने किया प्रणाम ।
पतितपावन सीताराम ।।63।।
मुझको भेजा है रघुराया ।
सागर लांघ यहां मैं आया ।।
मैं हूं राम दास हनुमान ।
पतितपावन सीताराम ।।64।।
भूख लगी फल खाना चाहूँ ।
जो माता की आज्ञा पाऊँ ।।
सब के स्वामी हैं श्री राम ।
पतितपावन सीताराम ।।65।।
सावधान हो कर फल खाना ।
रखवालों को भूल ना जाना ।।
निशाचरों का है यह धाम ।
पतितपावन सीताराम ।।66।।
हनुमान ने वृक्ष उखाड़े ।
देख देख माली ललकारे ।।
मार-मार पहुंचाये धाम ।
पतितपावन सीताराम ।।67।।
अक्षय कुमार को स्वर्ग पहुंचाया ।
इन्द्रजीत को फांसी ले आया ।।
ब्रह्मफांस से बंधे हनुमान ।
पतितपावन सीताराम ।।68।।
सीता को तुम लौटा दीजो ।
उन से क्षमा याचना कीजो ।।
तीन लोक के स्वामी राम ।
पतितपावन सीताराम ।।69।।
भगत बिभीषण ने समझाया ।
रावण ने उसको धमकाया ।।
सनमुख देख रहे रघुराई ।
पतितपावन सीताराम ।।70।।
रूई, तेल घृत वसन मंगाई ।
पूंछ बांध कर आग लगाई ।।
पूंछ घुमाई है हनुमान ।।
पतितपावन सीताराम ।।71।।
सब लंका में आग लगाई ।
सागर में जा पूंछ बुझाई ।।
ह्रदय कमल में राखे राम ।
पतितपावन सीताराम ।।72।।
सागर कूद लौट कर आये ।
समाचार रघुवर ने पाये ।।
दिव्य भक्ति का दिया इनाम ।
पतितपावन सीताराम ।।73।।
वानर रीछ संग में लाए ।
लक्ष्मण सहित सिंधु तट आए ।।
लगे सुखाने सागर राम ।
पतितपावन सीताराम ।।74।।
सेतू कपि नल नील बनावें ।
राम-राम लिख सिला तिरावें ।।
लंका पहुँचे राजा राम ।
पतितपावन सीताराम ।।75।।
अंगद चल लंका में आया ।
सभा बीच में पांव जमाया ।।
बाली पुत्र महा बलधाम ।
पतितपावन सीताराम ।।76।।
रावण पाँव हटाने आया ।
अंगद ने फिर पांव उठाया ।।
क्षमा करें तुझको श्री राम ।
पतितपावन सीताराम ।।77।।
निशाचरों की सेना आई ।
गरज तरज कर हुई लड़ाई ।।
वानर बोले जय सिया राम ।
पतितपावन सीताराम ।।78।।
इन्द्रजीत ने शक्ति चलाई ।
धरनी गिरे लखन मुरझाई ।।
चिन्ता करके रोये राम ।
पतितपावन सीताराम ।।79।।
जब मैं अवधपुरी से आया ।
हाय पिता ने प्राण गंवाया ।।
वन में गई चुराई बाम ।
पतितपावन सीताराम ।।80।।
भाई तुमने भी छिटकाया ।
जीवन में कुछ सुख नहीं पाया ।।
सेना में भारी कोहराम ।
पतितपावन सीताराम ।।81।
जो संजीवनी बूटी को लाए ।
तो भाई जीवित हो जाये ।।
बूटी लायेगा हनुमान ।
पतितपावन सीताराम ।।82।।
जब बूटी का पता न पाया ।
पर्वत ही लेकर के आया ।।
काल नेम पहुंचाया धाम ।
पतितपावन सीताराम ।।83।।
भक्त भरत ने बाण चलाया ।
चोट लगी हनुमत लंगड़ाया ।।
मुख से बोले जय सिया राम ।
पतितपावन सीताराम ।।84।।
बोले भरत बहुत पछताकर ।
पर्वत सहित बाण बैठाकर ।।
तुम्हें मिला दूं राजा राम ।
पतितपावन सीताराम ।।85।।
बूटी लेकर हनुमत आया ।
लखन लाल उठ शीष नवाया ।।
हनुमत कंठ लगाये राम ।
पतितपावन सीताराम ।।86।।
कुंभकरन उठकर तब आया ।
एक बाण से उसे गिराया ।।
इन्द्रजीत पहुँचाया धाम ।
पतितपावन सीताराम ।।87।।
दुर्गापूजन रावण कीनो ।
नौ दिन तक आहार न लीनो ।।
आसन बैठ किया है ध्यान ।
पतितपावन सीताराम ।।88।।
रावण का व्रत खंडित कीना ।
परम धाम पहुँचा ही दीना ।।
वानर बोले जय श्री राम ।
पतितपावन सीताराम ।।89।।
सीता ने हरि दर्शन कीना ।
चिन्ता शोक सभी तज दीना ।।
हँस कर बोले राजा राम ।
पतितपावन सीताराम ।।90।।
पहले अग्नि परीक्षा पाओ ।
पीछे निकट हमारे आओ ।।
तुम हो पतिव्रता हे बाम ।
पतितपावन सीताराम ।।91।।
करी परीक्षा कंठ लगाई ।
सब वानर सेना हरषाई ।।
राज्य बिभीषन दीन्हा राम ।
पतितपावन सीताराम ।।92।।
फिर पुष्पक विमान मंगाया ।
सीता सहित बैठे रघुराया ।।
दण्डकवन में उतरे राम ।
पतितपावन सीताराम ।।93।।
ऋषिवर सुन दर्शन को आये ।
स्तुति कर मन में हर्षाये ।।
तब गंगा तट आये राम ।
पतितपावन सीताराम ।।94।।
नन्दी ग्राम पवनसुत आये ।
भाई भरत को वचन सुनाए ।।
लंका से आए हैं राम ।
पतितपावन सीताराम ।।95।।
कहो विप्र तुम कहां से आए ।
ऎसे मीठे वचन सुनाए ।।
मुझे मिला दो भैया राम ।
पतितपावन सीताराम ।।96।।
अवधपुरी रघुनन्दन आये ।
मंदिर-मंदिर मंगल छाये ।।
माताओं ने किया प्रणाम ।
पतितपावन सीताराम ।।97।।
भाई भरत को गले लगाया ।
सिंहासन बैठे रघुराया ।।
जग ने कहा, “हैं राजा राम” ।
पतितपावन सीताराम ।।98।।
सब भूमि विप्रो को दीनी ।
विप्रों ने वापस दे दीनी ।।
हम तो भजन करेंगे राम ।
पतितपावन सीताराम ।।99।।
धोबी ने धोबन धमकाई ।
रामचन्द्र ने यह सुन पाई ।।
वन में सीता भेजी राम ।
पतितपावन सीताराम ।।100।।
बाल्मीकि आश्रम में आई ।
लव व कुश हुए दो भाई ।।
धीर वीर ज्ञानी बलवान ।
पतितपावन सीताराम ।।101।।
अश्वमेघ यज्ञ किन्हा राम ।
सीता बिन सब सूने काम ।।
लव कुश वहां दीयो पहचान ।
पतितपावन सीताराम ।।102।।
सीता, राम बिना अकुलाई ।
भूमि से यह विनय सुनाई ।।
मुझको अब दीजो विश्राम ।
पतितपावन सीताराम ।।103।।
सीता भूमि में समाई ।
देखकर चिन्ता की रघुराई ।।
बार बार पछताये राम ।
पतितपावन सीताराम ।।104।।
राम राज्य में सब सुख पावें ।
प्रेम मग्न हो हरि गुन गावें ।।
दुख कलेश का रहा न नाम ।
पतितपावन सीताराम ।।105।।
ग्यारह हजार वर्ष परयन्ता ।
राज कीन्ह श्री लक्ष्मी कंता ।।
फिर बैकुण्ठ पधारे धाम ।
पतितपावन सीताराम ।।106।।
अवधपुरी बैकुण्ठ सिधाई ।
नर नारी सबने गति पाई ।।
शरनागत प्रतिपालक राम ।
पतितपावन सीताराम ।।107।।
“श्याम सुंदर” ने लीला गाई ।
मेरी विनय सुनो रघुराई ।।
भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम ।
पतितपावन सीताराम ।।108।।
दिल से बोलो
जय जय सियाराम
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Friday, 7 April 2017

मुसलमान की आत्मव्यथा

एक मुसलमान :- "हमने तुमपर एक हज़ार साल तक राज किया है और तुमको और तुम्हारी लड़कियों को गुलाम बना बनाकर रखा है "
एक सनातनी :- " तुमने हमपर नहीं बल्कि अरबीयों और तुर्कीयों ने तुमपर राज किया है और तुमको मुसलमान बना लिया हमपर किया होता तो हम मुसलमान बन गए होते, क्योंकि मालिक अपने नौकर को जैसा चाहे वैसा बना लेता है तभी तुमलोग मुसलमान बन गए और हम नहीं बने बल्कि अपने सिर कटवाते रहे और काटते रहे, तुम्हारे डरपोक हिन्दू पूर्वजों ने अपने सभी घुटने टेक दिये और अपनी लड़कियाँ मुसलमानों को दे देकर अपनी जान तक बचाई । 
तुम इन इन कारणों से मुसलमान बने :-
 (१) मुसलमान सैनिक लूट में आम लोगों की स्त्रीयाँ लूटते और आपस में बाँट लेते थे जिससे उनकी जो औलादें पैदा होतीं थीं वे सब समाज में यश तो पा नहीं सकती थीं और इसी कारण उनको मदरसों में भेजकर मुसलमान ही बनना पड़ता था ।
 (२) मुसलमान बादशाह अय्याश होते थे । वे अपने लिये वैश्याघर बनवाते थे और लूट की औरतें रखते थे । जो बहादुरा होतीं थीं वे लड़ती थीं या जोहर करती थीं, लेकिन जो डरपोक होतीं थी वो बादशाह के हरम में जाना पसंद करतीं थीं । जिनके बच्चे पैदा होकर मुसलमान ही बनते थे । गंदा पाप का खून आखिर गंदा ही तो रहेगा ।
 (३) हिन्दू समाज में विधवा महिला के पुनर्विवाह का प्रावधान नहीं होता था । तो वे विधवाएँ मुसलमानों से विवाह कर लेती थीं जिनसे की मुसलमानों की संतती आगे बढ़ी ।
 (४) किसी नगर में जब किसी मुगल सैनिक द्वारा किसी कन्या का बलात्कार होता था तो उस कन्या को ठुकरा दिया जाता था और वह कन्या जाकर किसी हरम में शामिल हो जाती थी और जो बच्चा पैदा होता था वो मुसलमान बनता था ।
 (५) बहुत से हिन्दुओं के कूओं में गौमाँस फेंक दिया जाता था जिसके कारण उसमें से पानी पीने वालों का बहिष्कार कर दिया जाता था और वे लोग मुसलमान बन जाते थे । 
(६) तलवार के दम पर बहुत से डरपोक मुसलमान बनाये गए । तो आप कैसे कह सकते हो कि आपने हमपर राज किया राज तो आपलोगों पर हुआ है ? बलात्कार की पैदाईश होने से आपके खून में गंदगी भरी हुई है । अरबी लोग आज भी आपपर थूकते नहीं हैं । आपको कनव्रटिड कुत्ता या हरामी कहकर गाली देते है । क्योंकि वे जानते हैं कि उन्होंने आपपर राज किया है । अगर उन्होंने पूरे देश पर राज किया होता तो सारा देश इस्लामी बन जाता ईराक, ईरान, सीरीया, मोरक्को, मिस्त्र की तरह । " तो मुल्लो ये ज्ञात रहे मुल्लो ने हम पर राज किया होता तो हम भी मुल्ला बन चुके होते । हम कभी ना झुखे थे और ना झुकेंगे ।। 
बोलो जय राम जी ।।

देश में अशांति का कारन |

राम राम | सीताराम | राम राम |

एक घर परिवार बहुत ख़ुशी से रहता था | उसका पडोसी बड़ा दुष्ट था | उसने बच्चे को पढ़ाना शुरू किया | उसने एक टीचर से पढ़वाना शुरू किया | तुम्हारा बाप ख़राब है तेरा भाई ख़राब तुम अच्छे कपडे नहीं पहनते हो | तुम्हे बढ़िया घर नहीं है | तुम्हे बांग्ला गाड़ी सब नहीं है | तुमपर बहुत जुल्म हो रहा है | अब घर में कलह शुरू हुआ | घर में दीवारे बन गयी | बंटवारा हो गया | पडोसी बच्चो के घर में रहने लगा | बच्चों की पिटाई मार और उसका सब चीज पडोसी ने लिया | धीरे धीरे एक तरफा व्यापार शुरू हो गया | व्यापार से संपत्ति को धीरे धीरे लूट लिया |
यह भारत की कहानी है | एक पडोसी अरब (मुग़ल ) ने बच्चो को इस्लामियत सिखाया | ईरान इंडोनेशिया अफगानिस्तान पाकिस्तान बनाया |
अब वामपंथी बुद्धिजीवी पढ़ा रहे है बच्चे हल्ला कर कश्मीर केरल बंगाल आसाम हैदराबाद नागालैंड बना चुके है | अभी केवल बंटवारा नहीं हुआ है |
अब टीचर भी बढ़ गए है | ईसाई मिसिनरी और इस्लाम के वामपंथी बुद्धिजीवी टीचर पढ़ा रहे है | वामपंथी शिक्षक को ईसाई और इस्लाम के धर्म परिवर्तन करवाने वालो से मोटी रकम मिलता है |

पश्चिमी देशो की यूनिवर्सिटी में ईसाई मिशनरी का बोलबाला है | जो हिन्दू धर्म को बदनाम करती है | वहां हिन्दू धर्म को बारे में सुनियोजित तरीके से भगवान् को काल्पनिक और धर्म ग्रन्थ को झूठा बताया जाता है | इस झूठ के कारन युवा धर्म के विरुद्ध हो जाते है |

जो युवा पढ़ाई और रोजगार करने विदेश जाते है | उनका ये ईसाई मिशनरी वाले ब्रेनवाश कर देते है | युवा को ईसाईयत पढ़ा दिया जाता है | जिससे ये अपने धर्म देश और समाज को छोटा समझने लगते है | 
आज बहुत सारा भारतीय संसंथान में इन धर्म परिवर्तन वालो का बोलबाला है |
इस्लाम और ईसाई धर्म परिवर्तन वाले वामपंथी बुद्धिजीवी ,मिडिया, समाचार पत्र, प्रोफेशर को एक मोटी रकम देते है | इस रकम के बदले ये लोग दिन रात भारत और हिन्दू को ख़राब बुरा भला कहते रहते है | ये हिन्दू की खराबी दिखते है | जनता में असंतोष बढ़ाते है | धर्म को झूठा और बदनाम करते है |धर्म को झूठा और काल्पनिक बोलकर ब्रेन वाश करते है |
रोजी रोटी कमाने के लिए पढ़ाई करने वाले युवा धर्म और देश के ही विरुद्ध हो जाते है | धर्म छोड़कर ये उग्र बन जाते है | इनका जिंदगी से देश और धर्म सब ख़त्म हो जाता है | जिंदगी में अँधेरा हो जाता है |
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते, तब तक आप भगवान पर भी भरोसा नहीं कर सकेंगे। - स्वामी विवेकानंद
ज्ञातव्य :सनातन धर्मी (जैन बौद्ध सिख हिन्दू ) अच्छे बच्चे बंटवारा नहीं चाहते | हम लोग सिर्फ ईसाई और इस्लाम की झूठ वामपंथ द्वारा लिखी इतिहास पढ़ रहे है | जो भारत के इतिहास को ख़राब और धर्म को झूठा कहा है
वामपंथी किसी धर्म को नही मानते है धर्म त्याग कर नक्सल माओवाद और उग्रवादी क्यों बनते है जिसने राम को भुला दिया उसने सब अपना सब खो दिया ।

वामपंथी के गुरुदेव मार्क्सवादी विचार धारा के प्रणेता " कार्ल मॉर्क्स " के अनुसार -
1.) धर्म लोगों का अफीम है !
2.) लोगों की ख़ुशी के लिए पहली आवश्यकता धर्म का अंत है !
तथा
3.) धर्म मानव मस्तिष्क जो न समझ सके उससे निपटने की नपुंसकता है !
देश में फैली निराशावाद का और वामपंथी नाश के कारन "कार्ल मॉर्क्स" का विचार ही है । अतः आप जान गए है । रूस , चीन, भारत हर जगह इस तरह के विचार से मार्क्सवाद ने धर्म का हानि किया । हर जगह से वामपंथी नष्ट हो गए । अब सिर्फ भारत में है और अंत की ओर जा रहे है ।
राम ही जीवन का आधार है । राम ही प्राण है । राम का साथ छोड़ने से राम नाम सत्य हो जता है ।

जिसने राम को पा लिया उसको सब मिल गया । राम का विरोध करने वाले को शांति नही मिलती है । राम द्रोही अशांत होकर निराशावादी हो जाते है । उसके बाद वो अंत की तरफ बढ़ जाते है ।
बोलो जय श्री राम । सीताराम ।